à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ मंदिर की संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤•à¤¾ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¤¿ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥€ पाणà¥à¤¡à¥‡à¤¯ जो पहले कटघोरा मे निवासरत थी, दिसमà¥à¤¬à¤° 1998 मे माठकी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से मंदिर निरà¥à¤®à¤¾à¤£ का कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकरवाया à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¥à¤² चयन à¤à¥€ मातारानी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किया गया।
14 फरवरी 1999 को महाशिव रातà¥à¤°à¤¿ परà¥à¤µ पर मंदिर की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆ, इसके तà¥à¤°à¤‚त बाद जनवरी 2000 मे कसाईयों के हाथ पड़ी 58 गायों को राशि देकर खरीदा गया à¤à¤µà¤‚ इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यहाठगौशाला की à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गई। संसà¥à¤¥à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गरीब, शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठमाठमंदाकिनी विदà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€à¤ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गई है, जिसमें नि:शà¥à¤²à¥à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मंदिर समिति दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की जा रही हैं।